अमूमन हिन्दी साहित्य का इतिहास अनगिनत होनहार शख्सियतों के हुनरों से खजाना है। लेकिन इसी कड़ी में एक नाम ऐसा भी है, जिसने अपनी कल्पना और कलम के समागम को साहित्य के पन्नों पर कुछ इस कदर उकेरा कि लोग उनकी कलम के कायल हो गए। दशकों बाद भी उनकी कहानियां हर बच्चे की जुबां पर हैं, तो उनके उपन्यासों की दास्तां के दीवाने भी कई हैं। हिन्दी साहित्य के सुनहरे इतिहास में अपनी अमिट छाप छोड़ने वाली वो अद्भुत हस्ती हैं मुंशी प्रेमचन्द्र।
नाममुंशी प्रेमचन्द्रजन्मतिथि31 जुलाई 1880जन्म स्थानलमही, बनारसआयु56 वर्षमाताआनन्दी देवीपितामुंशी अजायब रायपत्नीशिवरानी देवीबेटाअमृत रायमृत्यु8 अक्टूबर 1936
मुंशी प्रेमचन्द्र का शुरुआती जीवन
मुंशी प्रेमचन्द्र का जन्म 31 जुलाई 1880 को उत्तर प्रदेश राज्य में बनारस (वाराणसी) जिले के लमही नामक गांव में हुआ था। मुंशी जी के बचपन का नाम (munshi premchand childhood name) धनपत राय था। तीन बहनों में सबसे छोटे भाई मुंशी जी नवाब राय के नाम से भी मशहूर थे।
अपने जन्म के बारे में मुंशी जी लिखते हैं –(munshi premchand poem)
सन् अट्ठारह सौ अस्सी, लमही सुंदर ग्राम।
प्रेमचंद को जनम भयो, हिन्दी साहित काम।।
परमेश्वर पंचन बसें, प्रेमचंद कहि बात।
हल्कू कम्बल बिन मरे, वही पूस की रात।।
मुंशी प्रेमचन्द्र का परिवार (munshi premchand family)
मुंशी जी के पिता अजायब राय गांव के ही डाकघर में मुंशी थे, वहीं उनकी माता का नाम आनन्दी था, जिनके नाम का जिक्र मुंशी प्रेमचन्द्र की मशहूर कहानी बड़े घर की बेटी में आनन्दी का किरदार निभाने वाली मुख्य नायिका के रूप में मिलता है।
मुंशी प्रेमचन्द्र बचपन से ही अपनी मां और दादी के बेहद करीब थे। लेकिन मुंशी जी महज 8 साल के थे, जब उनकी माता का स्वर्गवास हो गया और कुछ समय बाद उनकी दादी भी चल बसीं। वहीं उनकी बड़ी बहन की भी शादी हो चुकी थी।ऐसे में मुंशी जी बेहद अकेले हो गए। इसी बीच पिता का तबादला गोरखपुर हो गया।
मंशी जी के बचपन का जिक्र करते हुए रामविलास शर्मा जी कहते हैं- “जब वे सात साल के थे, तभी उनकी माता का स्वर्गवास हो गया। जब पंद्रह वर्ष के हुए तब उनका विवाह कर दिया गया और सोलह वर्ष के होने पर 1897 में उनके पिता का भी देहांत हो गया।”
मुंशी जी नौंवी कक्षा में थे, जब उनका विवाह एक बड़े सेठ की बेटी से कर दिया गया था। हालांकि साल 1906 में शिवरानी राय से हुआ, जोकि एक बाल विधवा थीं।
मुंशी जी के पिता अजायब राय गांव के ही डाकघर में मुंशी थे, वहीं उनकी माता का नाम आनन्दी था, जिनके नाम का जिक्र मुंशी प्रेमचन्द्र की मशहूर कहानी बड़े घर की बेटी में आनन्दी का किरदार निभाने वाली मुख्य नायिका के रूप में मिलता है।
मुंशी प्रेमचन्द्र बचपन से ही अपनी मां और दादी के बेहद करीब थे। लेकिन मुंशी जी महज 8 साल के थे, जब उनकी माता का स्वर्गवास हो गया और कुछ समय बाद उनकी दादी भी चल बसीं। वहीं उनकी बड़ी बहन की भी शादी हो चुकी थी।ऐसे में मुंशी जी बेहद अकेले हो गए। इसी बीच पिता का तबादला गोरखपुर हो गया।
मंशी जी के बचपन का जिक्र करते हुए रामविलास शर्मा जी कहते हैं- “जब वे सात साल के थे, तभी उनकी माता का स्वर्गवास हो गया। जब पंद्रह वर्ष के हुए तब उनका विवाह कर दिया गया और सोलह वर्ष के होने पर 1897 में उनके पिता का भी देहांत हो गया।”
मुंशी जी नौंवी कक्षा में थे, जब उनका विवाह एक बड़े सेठ की बेटी से कर दिया गया था। हालांकि साल 1906 में शिवरानी राय से हुआ, जोकि एक बाल विधवा थीं।
मुंशी प्रेमचन्द्र की शिक्षा (munshi premchand education)
मुंशी जी ने 7 साल की उम्र में लमही में ही स्थित एक मदरसे से अपनी स्कूली शिक्षा शुरु की थी। मुंशी जी को बचपन से ही किताबें पढ़ने का बेहद शौक था। उन्होंने छोटी सी उम्र में पारसी भाषा में लिखित तिलिस्म-ए-होशरुबा किताब पढ़ ली थी। इसी दौरान मंशी जी को किताबों की दुकान पर नौकरी मिल गई। किताबों की बिक्री के साथ-साथ मुंशी जी को यहां ढ़ेर सारी किताबें पढ़ने का मौका मिला।
वहीं मुंसी जी ने एक मिशनरी स्कूल से अंग्रेजी भाषा की शिक्षा प्राप्त की, जिसके बाद उन्होंने जॉर्ज रेनॉल्ड्स के द्वारा लिखी मशहूर किताब ‘द मिस्ट्री ऑफ द कोर्ट ऑफ लंदन’ का आठवां संस्करण भी पढ़ा।
हालांकि किताबों के शौकीन मुंशी जी गणित में काफी कमजोर थे। नतीजतन उन्हें बनारस के क्वीन्स कॉलेज में दाखिला तो मिल गया लेकिन विश्वविद्यालय के नियमानुसार परीक्षाओं में पहली श्रेणी हासिल करने वाले विद्यार्थियों को ही आगे की पढ़ाई करने की अनुमति थी। वहीं प्रेमचन्द्र जी का नाम दूसरी श्रेणी में आने के कारण कॉलेज से उनका नाम काट दिया गया।
जिसके बाद उन्होंने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में दाखिला लेने की कोशिश की लेकिन गणित कमजोर होने के कारण यहां भी बात न बन सकी।
मुंशी जी की शिक्षा के बारे में लिखते हुए रामविलास शर्मा जी कहते हैं कि- “1910 में मुंशी जी ने अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद 1919 में अंग्रेजी, फारसी और इतिहास विषय से स्नातक किया। जिसके बाद मुंशी जी शिक्षा विभाग के इंस्पेक्टर पद पर नियुक्त हुए।
हालांकि 1921 में महात्मा गांधी द्वारा असहयोग आंदोलन का आह्वान करने के साथ ही मुंशी जी ने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और पूरी तरह से साहित्य के कार्य जुट गए।
लेखक के रूप में मुंशी प्रेमचन्द्र (munshi premchand writer)
मुंशी प्रेमचन्द्र के अंदर लिखने का हुनर बचपन से ही था। उन्होंने अपनी पहली कहानी गोरखपुर में ही लिखि थी। यह कहानी एक पढ़े-लिखे नौजवान और एक पिछड़ा वर्ग से ताल्लुक रखने वाली महिला की प्रेम कहानी थी।
दरअसल पन्द्रह – सोलह साल तक की जिस उम्र में आम बच्चे दुनिया से रुबरु होने की कला सीखना शुरु करते हैं, उसी उम्र तक मुंशी जी जिंदगी की कई हकीकतों से वाकिफ हो चुके थे। राम विलास शर्मा की जुबां में –“सौतेली माँ का व्यवहार, बचपन में शादी, पंडे-पुरोहित का कर्मकांड, किसानों और क्लर्कों का दुखी जीवन-यह सब प्रेमचंद ने सोलह साल की उम्र में ही देख लिया था।”
शायद यही कारण था कि उनकी परिपक्कवता की झलक उनके साहित्य में आसानी से देखी जा सकती थी। मुंशी जी ने ‘देवस्थान रहस्य’ शीर्षक नाम से अपना पहला उन्यास लिखा, जिसे उन्होंने ‘नवाब राय’ केनाम से प्रकाशित कराया।
मुंशी प्रेमचन्द्र की रचनाएं (munshi premchand ki rachnaye)
मुंशी जी के मशहूर उपन्यास(munshi premchand novels)
Hindi Title | Urdu Title | Publisher |
Devasthan Rahasya | Asrar-e-Ma’abid | Awaz-e-Khalk |
Prema | Hamkhurma-o-Ham Sawab | Indian Press/Hindustan Publishing House |
SevaSadan | Bazaar-e-Husn | Calcutta Pustak Agency |
Rangbhoomi | Chaugan-e-Hasti | DarulIshaat |
Gaban | Ghaban | Saraswati Press, Benares; Lajpatrai& Sons, Urdu Bazaar |
Karmabhoomi | Maidan-e-Amal | MaktabaJamia, Delhi |
Godan | Saraswati Press |
मुंशी प्रेमचन्द्र जी की प्रसिद्ध कहानियां (munshi premchand stories)
Title | Publisher | Date |
Duniya ka Sabse Anmol Ratan | Zamana | 1907 |
Beti ka Dhan | Zamana | 1915 |
Saut | Saraswati Press | 1915 |
Panch Parmeshwar | Saraswati Press | 1916 |
Shatranj ke Khiladi | Madhuri | 1924 |
Idgah | Chand | 1933 |
Lottery | Zamana |
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